सवालों की जांच और जांच पर कई सवाल

यह एक सामान्य तथ्य है कि हर सुनियोजित कत्ल के पीछे इंसान की पाशविक प्रवृत्ति से जुड़े कुछ स्याह राज जिम्मेदार होते हैं. ऐसे में अगर एक मध्यवर्गीय मुसलिम परिवार से निकलकर अपनी पहचान बनाने वाली किसी महिला के कत्ल का मामला हो तो ये राज और गहरे समझे जाने लगते हैं. सामाजिक कार्यकर्ता शेहला मसूद की भोपाल में हुई बर्बर हत्या के लगभग 30 दिन बाद भी उनका कत्ल शहर में चर्चा और रहस्य का विषय बना हुआ है.

अमूमन ऐसे वाकयों को हफ्ते भर में भुला देने वाला प्रदेश मीडिया इस सनसनीखेज हत्या की तफ्तीश के दौरान हर रोज आ रही ताजा जानकारियों के संदर्भों को समझने में उलझा पड़ा है. वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश पुलिस से लेकर केंद्रीय जांच एजेंसियों तक, पूरा प्रशासनिक महकमा भी इस मामले में हर रोज जुड़ रहे नये आयामों और धुंधले सुरागों के बिंदुओं को जोड़कर इस कत्ल की गुत्थी सुलझाने में जुटा है.  हालांकि 30 दिन तक अपनी पूरी ताकत झोंक देने के बाद भी जांच एजेंसियां इस हत्याकांड को सुलझाने की दिशा में किसी ठोस नतीजे तक पहुंचने में नाकाम रही हैं.  इस दौरान यह जरूर हुआ है कि मामले की जांच आगे बढ़ने के साथ-साथ पुलिस की लापरवाही भरी जांच, राजनीतिक गुटबाजी और स्थानीय मीडिया के सामंती रवैये से जुड़ी कई बातें स्पष्ट होकर सामने आ रही हैं.

शेहला ने एक साक्षात्कार में आईजी पवन श्रीवास्तव और विधायक विश्वास सारंग पर धमकाने के आरोप लगाए थेमसूद हत्याकांड में पिछले दिनों निर्णायक मोड़ तब आया जब प्रदेश पुलिस ने 5 सितंबर को केस डायरी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपी. मामला हाथ में लेते ही सीबीआई ने अपनी पहले दिन की तफ्तीश से ही प्रदेश पुलिस के ढीले और लापरवाह रवैये की कलई खोल दी. पड़ताल के दौरान सीबीआई ने शेहला की कार से एक सोने का पेंडेंट (लॉकेट) और कागजों से भरी एक फाइल बरामद की. सोने का यह पेंडेंट कार की उस ड्राइविंग सीट के नीचे पड़ा था, जिस पर बैठी हुई शेहला को गोली मारी गई थी. वहीं कागजात से भरी एक फाइल उनकी कार की डिग्गी में पड़ी हुई थी. ड्राइविंग सीट के नीचे मिले पेंडेंट को एक अहम सबूत बताते हुए सीबीआई सूत्रों ने कहा कि हत्या से पहले हुए किसी संघर्ष की संभावना को नकारा नहीं जा सकता. जांच अधिकारियों ने राजधानी के महाराणा प्रताप स्थित शेहला की विज्ञापन एजेंसी ‘मिराकल्स’ की भी गहरी छानबीन की है.

शेहला के परिजनों का मानना है कि प्रदेश पुलिस का लापरवाह रवैया पहले ही केस को काफी कमजोर बना चुका है. तहलका से बातचीत के दौरान शेहला के पिता मसूद सुल्तान कहते हैं, ‘घटना के तुरंत बाद ही पुलिसवालों ने शेहला का लैपटॉप, मोबाइल और उसकी कार, सब कुछ अपने कब्जे में कर लिया था. लेकिन अब उसकी कॉल डिटेल्स से जाहिर हुआ है कि पुलिस उसकी हत्या के एक दिन बाद तक उसके मोबाइल फोन से अनजान लोगों को फोन कर रही थी. ये लोग उसकी कार में पड़े कागज और उसकी ड्राइविंग सीट के नीचे पड़ा लॉकेट तक नहीं ढूंढ़ पाए. हम इनसे न्याय की उम्मीद कैसे करें?’  गौरतलब है कि सीबीआई जांच के दौरान यह उजागर हुआ था कि शेहला की हत्या के एक दिन बाद तक उनके मोबाइल फोन से मंडला और भोपाल के दो नंबरों पर कुल चार फोन कॉल किए गए थे. यह तथ्य उजागर होने के बाद से प्रदेश के पुलिस महकमे पर इस हत्याकांड से जुड़े अहम सबूतों से छेड़छाड़ करने और मामले की लीपापोती करने के आरोप लग रहे हैं. शेहला की बहन आयशा मसूद आगे जानकारी देते हुए कहती हैं कि उनके परिवार को विश्वास है कि अपनी 20 दिन की पड़ताल के दौरान प्रदेश पुलिस ने केस काफी हद तक बिगाड़ दिया है. इस बाबत मसूद परिवार को हाल ही में मिले एक अनाम खत का जिक्र करते हुए वे बताती हैं , ‘हमें एक गुमनाम खत मिला है जिसमें लिखा है कि मध्य प्रदेश पुलिस अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रही है. उन्होंने शेहला के कंप्यूटर से संबंधित डाटा निकालकर आईजी पवन श्रीवास्तव को दे दिया है. जिस लापरवाही से उन्होंने मामले की छानबीन की है उससे तो लगता है कि खत में लिखी बात सच है. शेहला ने तमाम लोगों के खिलाफ सूचना के अधिकार के तहत जो भी जानकारियां जुटाई थीं, उसका काफी बड़ा हिस्सा उसके कंप्यूटर में था. हो सकता है कि इन लोगों ने हर संबंधित व्यक्ति तक उससे जुड़ी जानकारी पहुंचा दी हो ताकि वह अपना डिफेंस तैयार कर सके. ‘ 

गौरतलब है कि एक अंग्रेजी पत्रिका को दिए अपने आखिरी साक्षात्कार में शेहला ने पुलिस महानिरीक्षक पवन श्रीवास्तव के साथ-साथ भाजपा के विधायक विश्वास सारंग से अपनी जान को खतरा बताया था. जुलाई, 2011 में दिए गए इस साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, ‘सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मैंने जो भी जानकारियां हासिल की हैं, उसकी वजह से कई लोग मुझे जान से मारने की धमकी दे चुके हैं. इसमें मुख्यमंत्री के प्रोटोकॉल ऑफिसर से लेकर भाजपा विधायक विश्वास सारंग और कई भ्रष्ट अफसरशाह भी शामिल हैं…’ शेहला के परिजनों का कहना है कि प्रदेश पुलिस ने शेहला द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों में लगाए गए तमाम आरटीआई आवेदनों की ठीक से जांच नहीं की है. आयशा कहती हैं, ‘उसने साफ कहा है कि उसे जान का खतरा है और उसने कुछ लोगों के नाम भी गिनवाए थे, फिर भी पुलिस अब तक हत्यारों को क्यों नहीं पकड़ पाई?’

फिलहाल मामला केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई के हाथों में जाने के बाद शेहला के परिवार को न्याय की आस बंध गई है. शेहला से जुड़े उनके करीबी मित्रों का मानना है कि वह सक्रिय राजनीति में जाने की भी योजना बना रही थी. एक तरफ जहां भाजपा के अनिल दवे और विश्वास सारंग जैसे नेताओं को उन्होंने खुले तौर पर अपना विरोधी घोषित कर रखा था, वहीं दूसरी ओर भाजपा के ही तरुण विजय और ध्रुव नारायण सिंह जैसे राष्ट्रीय और राज्य स्तर के बड़े नेताओं से उनकी अच्छी मित्रता थी. यहां तक कि उनके फेसबुक अकाउंट में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ उनकी मुलाकात की तस्वीरों का पूरा एक एलबम मौजूद है.  विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि शेहला प्रदेश भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे का नया चेहरा बनना चाहती थीं. शेहला के बारे में बात करते हुए उनके एक करीबी मित्र कहते हैं, ‘2008 के बाद और उसके पहले की शेहला काफी अलग-अलग थीं. 2008 से पहले तक उनका ध्यान कार रैलियां, फैशन शो और ऐसे ही तमाम कार्यक्रम आयोजित करने की तरफ ज्यादा था. फिर अचानक पता नहीं क्या हुआ और एक दिन वह फेसबुक पर लिखती है कि अब मध्य प्रदेश एक टाइगर राज्य नहीं है. फिर अचानक वह अन्ना आंदोलन से जुड़कर भ्रष्टाचार के खिलाफ शाहजहानी बाग में धरने पर बैठ जाती है. उसके अंदर भावनाओं का जैसे एक तूफान घुमड़ा करता था और वह बहुत अप्रत्याशित स्वभाव की थी.’  शेहला के राजनीति की तरफ होते झुकाव के बारे बताते हुए वे आगे कहते हैं, ‘हाल के दिनों में उसमें कई बदलाव आए. शायद काम का दबाव रहा होगा कि वह मिजाजन कुछ परेशान और चिड़चिड़ी-सी रहने लगी थी. एक तरफ वह भाजपा में शामिल भी होना चाहती थी, दूसरी तरफ उन्हीं की सरकार के खिलाफ खूब आरटीआई भी लगाती थी. उसे शक्ति तो चाहिए थी पर वह शायद तय नहीं कर पा रही थी कि उसे कौन-सा रास्ता चुनना है.’  

शेहला मसूद हत्याकांड के तमाम पहलुओं के बीच स्थानीय मीडिया का सामंती रवैया भी मृतका के परिजनों की परेशानियों को बढ़ा रहा है. आयशा प्रदेश के अखबारों की आलोचना करते हुए कहती हैं, ‘मीडिया का ध्यान इस बात पर बिलकुल नहीं है कि किसी की हत्या हुई और उसके कातिलों को सजा मिलनी चाहिए. सभी उसके निजी संबंधों के बारे में तथ्यहीन बातें लिखकर अपने अखबार बेच रहे हैं. इन्हें तो इस बात का भी लिहाज नहीं है कि शेहला अपनी सफाई देने के लिए जिंदा नहीं है.’ मसूद हत्याकांड की मीडिया कवरेज की आलोचना राज्य के महिला संगठन भी कर रहे हैं. अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की प्रदेश अध्यक्ष संध्या शैली कहती हैं, ‘पूरे मामले में मीडिया की भूमिका बहुत खतरनाक रही है. अगर किसी पुरुष की हत्या होती तब भी क्या प्रदेश का यह सामंती मीडिया मृतक की हत्या को छोड़कर उसके निजी संबंधों के बारे में लगातार लिखता? भोपाल एक बहुत रूढ़िवादी शहर है और किसी महिला के चरित्र पर कीचड़ उछालना लोगों के लिए सबसे आसान काम है. कोई महिला अपने निजी जीवन में किसी से भी मित्रता रखती हो, इससे हम उसकी हत्या को जायज कैसे ठहरा सकते हैं?’