मॉडलिंग से मध्यस्थता वाया संतई

अन्ना हजारे के बारह दिवसीय आंदोलन में राष्ट्रीय स्तर पर उभरे कई नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों, फिल्मी सितारों और सामाजिक सुधारकों में एक नाम ऐसा था जो ज्यादातर लोगों के लिए अब तक अनजाना-सा था. आध्यात्मिक संत भय्यू महाराज को मध्यस्थ के रूप में देख कर जेडी(यू) नेता शरद यादव भी संसद में अपने आप को कहने से नहीं रोक पाए, ’वहां एक मध्यस्थ है जो हीरो की तरह दिखता है.’

उनका कहना गलत नहीं था. आध्यात्मिक संत के तौर पर मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में अपनी पहचान बना चुके इस 43 वर्षीय युवा संत का रंग-ढंग किसी पारंपरिक संत से मेल नहीं खाता, न लंबे बाल और न ही गेरुए वस्त्र. अक्सर कुर्ते-पायजामे और माथे पर छोटे-से चंदन के टीके में दिखने वाले और व्यक्तिपूजा विरोधी भय्यू महाराज फेसबुक-ट्िवटर पर लगातार सक्रिय रहते हैं और स्कार्पियो चलाते हैं.

शुरुआती दौर में अन्ना और सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले भय्यू महाराज ने दोनों पक्षों के बीच की आखिरी दौर की बातचीत को भी सही दिशा देने में काफी अहम योगदान दिया था. ऐसे समय में जब लोग नेताओं पर भरोसा नहीं कर रहे थे और सरकार के पास ऐसा कोई देसी आदमी नहीं था जो अन्ना से उन्हीं की भाषा में आत्मीयता से बात कर सके, उस समय अन्ना को काफी पहले से जानने वाले भय्यू महाराज दोनों पक्षों को बातचीत के मंच पर लाने में कामयाब रहे थे. वे कहते हैं, ’दोनों पक्षों के बीच बातचीत सही दिशा में नहीं जा रही थी. मैंने बस उसे सही दिशा प्रदान की थी.’

भय्यू महाराज का एकमात्र आश्रम मध्य प्रदेश के इंदौर में श्री सदगुरू दत्ता धार्मिक और पारमार्थिक ट्रस्ट के नाम से पंजीकृत है. अपने घर की जमीन बेच कर बनाए गए इस सर्वोदय आश्रम में सिर्फ दो-तीन कमरे हैं जो रोजमर्रा के कार्यों के लिए उपयोग किए जाते हैं. उनका असली काम मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के गांवों में है जहां वे किसानों से जुड़े मुद्दों पर कार्य करते हैं. भय्यू महाराज के अनुसार वे जगह-जगह मंदिर नहीं बनवाते, बल्कि मंदिर के सामने कृषि विकास केंद्र स्थापित करते हैं, ताकि किसान भूखा न रहे. इसके अलावा वे महाराष्ट्र के बुलढाना के खमगांव में जरायमपेशा जाति के बच्चों और मध्य प्रदेश के धार जिले में आत्महत्या करने वाले किसानों के बच्चों के लिए विद्यालय संचालित करते हैं. ट्रस्ट द्वारा किसानों के लिए धरतीपुत्र सेवा अभियान और भूमि सुधार,  जल, मिट्टी व बीज परीक्षण प्रयोगशाला और बीज वितरण योजना चलाई जाती है. इसी तरह राष्ट्रीय भावना जागृत करने के लिए भारत माता के मंदिर बनवाए जाते हैं और संविधान जागरण अभियान चलाए जाते हैं. महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में पेयजल और किसानों की समस्याओं पर काम करने के अलावा गरीब परिवार की लड़कियों की शादी कराने के चलते भी भय्यू महाराज काफी लोकप्रिय हैं.

भय्यू महाराज का जन्म शुजालपुर, मध्य प्रदेश में 29 अप्रैल, 1968 को विश्वास राव देशमुख और कुमुदनी देवी देशमुख के किसान परिवार में हुआ था. तब उनका नाम था उदय सिंह देशमुख. इंदौर में पढ़ाई करने के दौरान ही दो साल उन्होंने सियाराम फैब्रिक्स के लिए मॉडलिंग भी की. शिक्षा पूरी करने के बाद महिंद्रा में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर काम किया मगर ग्लैमर और काॅरपोरेट की दुनिया में ज्यादा दिन मन नहीं रमा और 1999 में सामाजिक कार्य करने के लिए उन्होंने अपने ट्रस्ट की स्थापना की.

मध्य प्रदेश के इस मराठी संत को महाराष्ट्र के नेताओं के करीब होने के लिए भी जाना जाता है. इनके सबसे ज्यादा भक्त भी महाराष्ट्र में ही हैं और उनका राजनीतिक और सामाजिक असर भी सबसे ज्यादा इसी प्रदेश में दिखता है. महाराष्ट्र के कई बड़े नेताओं जैसे विलासराव देशमुख, उद्धव ठाकरे, बाल ठाकरे, गोपीनाथ मुंडे, आर आर पाटिल, सुशील कुमार शिंदे के अलावा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, अशोक चव्हाण, नितिन गडकरी, लालकृष्ण आडवाणी, मोहन भागवत और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील से उनके घनिष्ठ संबंध बताए जाते हैं. माना जाता है कि विलासराव देशमुख के मुख्यमंत्री रहते उनकी सरकार को बचाने में भी उनकी अहम भूमिका थी. इसके अलावा सुनील गावस्कर, यूसूफ पठान, लता मंगेशकर और अनिल कपूर जैसी हस्तियां भी उनके आश्रम आती रहती हैं.

अन्ना को पिछले 12 साल से जानने वाले भय्यू महाराज उनसे महाराष्ट्र में अपने सामाजिक कार्यों के सिलसिले में संपर्क में आए थे. वे बताते हैं, ’हमारा ट्रस्ट महाराष्ट्र के गांवों में खेती, शिक्षा, स्वास्थ्य और जल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करता है. हालांकि हमने अन्ना के गांव रालेगण सिद्धि में कार्य नहीं किया है, मगर अन्ना ने हमारा काम देखा है. हमने अन्ना के साथ आरटीआई आंदोलन में भी भाग लिया था.’
मध्यस्थ की भूमिका निभा कर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के बाद क्या राजनीति का रुख करेंगे? इस सवाल पर भय्यू महाराज कहते हैं, ’मैं अपने सामाजिक कार्यों में ही खुश हूं.’